बिहार में शराब या शराब में बिहार एक ऐसी लाइन है, जो हर किसी के लिए समझना थोड़ा मुश्किल हो सकता है, ठीक उस तरह ही जैसे बिहार पुलिस का शराब पीने वाले को पकड़ना, बजाए उनके जो शराब बेच रहे हैं. पिछले कुछ दिनों से बिहार में शराब का सेवन करने वालों की धरपकड़ शुरू हुई है और इसके लिए सरकारी ड्रामा भी हुआ यानी प्रतिज्ञा भी ली गई, हालांकि इसके बाद ही शराब नहीं पीने की कसम खाने वाले वर्दीधारी भी खुद को रोक नहीं सकें और उस गले को शराब से तर करने में जुट गए, जिस से प्रतिज्ञा के बोल निकलें थे. सवाल से बचते मुख्यमंत्री खैर हम भी कहाँ पीने वालों पर सवाल करने में जुट गए, उनको भला कौन रोक सकता है! लेकिन अब सवाल ये उठता है कि दिन के उजालों से लेकर रात के अंधेरों में मधुशाला का जाम छलकाने वाले महा-मनुष्यों को ऐसा महा-रस किस महारथी के महारत से मुहैया होता है या यूँ कह लें कि किस 'माननीय' के मान में इसको मान्यता मिल रही है? वैसे तो इसका जवाब देने में प्रदेश के मुखिया नीतीश कुमार भी बगल झाँकने लगते हैं और फिर वही पुरानी घिसी हुई लाइन दोहराते हुए अधिकारीयों पर इलज़ाम लगा कर बच निकलते हैं. लेकिन असल माय...
इंसान की पहचान कराते हैं लफ्ज़....