"अयोध्या हुई हमारी , अब काशी-मथुरा की बारी" जैसे कई अलग- अलग नारों से इस बार उत्तर प्रदेश चुनाव को एक नया रंग दिया जा रहा है, कभी कब्रिस्तान, कभी श्मशान, तो किसी के राम, तो किसी के परशुराम, उनकी जाति वाले के वहां छापेमारी, पंडित जी की यादव से यारी, ठाकुर सत्ताधारी, दलित चुनाव के समय चढ़ने वाली खुमारी, पिछड़ी ना चाह कर भी याद आ जाने वाली.... और ना जाने कौन-कौन से समीकरणों से उत्तर प्रदेश का विधानसभा चुनाव लड़ा जा रहा है. लेकिन हम यहाँ कुछ समीकरणों की बात करते हैं, जो पिछले चुनाव से मेल भी खाते हैं फिर भी कारगर नहीं दिख रहे है. यूपी इलेक्शन में इस बार धर्म को एक अलग पहचान मिली है, सभी राजनीतिक पार्टियाँ जाति के समीकरण के साथ ही साथ एक ख़ास धर्म के एंगल से चुनाव को जीतने में जुटी है. इसकी अनेकों वजहें है लेकिन उत्तर प्रदेश में एक मुद्दे को सबसे बड़ा बनाने की कोशिश चल रही है, वो ये है कि अयोध्या के बाद मथुरा में मंदिर निर्माण कराने का वादा करना और इसके नाम पर वोट बटोरना, लेकिन इस बार परिस्थिति बदली हुई नज़र आ रही है. हालांकि यह एजेंडा भारतीय जनता पार्टी के तरफ से...
इंसान की पहचान कराते हैं लफ्ज़....